दान का शाब्दिक अर्थ है – देना
दान के पीछे यह सिद्धांत काम करता है कि जो हम देते है वही हम पाते है । सम्पूर्ण प्रकृति इसी सिद्धांत पर काम करती है. वृक्षों का फल और नदियों का जल स्वयं के लिए नहीं होता। देवता भी वही कहलाता है जिसकी देने की प्रवृत्ति हो और संग्रह की प्रवृत्ति न हो।
दान के प्रकार –
अन्न दान , ज्ञान दान , गौ दान , औषधि दान , भूमि दान , कन्या दान , फल दान
, समय दान , क्षमा दान , श्रम दान , आशीर्वाद , अंग दान
किसी भी दान की तीन श्रेणियां होती है –
सात्विक दान – जब बिना किसी स्वार्थ के कर्तव्य निर्वहन हेतु दान किया जाता है तो वह सात्विक दान होता है .
राजसिक दान – पापों के प्रायश्चित और अन्य इच्छा पूर्ति के लिये जो दान किया जाता है वह राजसिक दान होता है तामसिक दान – अयोग्य व्यक्ति , प्रतिकूल समय और अशुद्ध व्यवहार के साथ दिया हुआ दान तामसिक दान कहलाता है .
दान के छह मुख्य कारण है –
धर्म – पशु पक्षियों को अन्न देना , ऋषियों को जीवन यापन हेतु स्वेच्छा से दान करना , इश्वर की कृपा प्राप्त करने हेतु दान करना
अर्थ – धन की प्राप्ति और अपनी विशेष इच्छाओं की पूर्ती हेतु दान करना। हेतु दान करना। इसको काम्य दान भी कहते है।
काम – स्त्रीगमन, सुरापान, शिकार और जुए के प्रसंग में अनधिकारी मनुष्यों को प्रयत्नपूर्वक जो कुछ दिया जाता है।
लज्जा – किसी की तुलना अथवा प्रतिष्ठा के कारण दान करना
हर्ष – किसी शुभ समाचार की प्राप्ति के उपरान्त प्रसन्नता के कारण दिया हुआ दान
भय – निंदा ,पाप , मृत्यु अथवा अन्य किसी भय के कारण दिया हुआ दान
ज्योतिष विज्ञान और दान – ज्योतिष विज्ञान असमय किये हुए दान , कुपात्र को दिए हुए दान और अनावश्यक दान को प्रशस्त नहीं करता। विशेष मुहूर्तों , विशेष व्यक्तियों और विशेष स्थान पर सुयोग्य दान की संस्तुति है।
जिन खराब कर्मों को संतुलित करना है , ग्रहों के माध्यम से उनका ज्ञान प्राप्त कर केवल उन्ही का दान करना चाहिए।
दान का निर्धारण तीन प्रकार से होता है –
सामर्थ्य
श्रद्धा
आवश्यकता
दान का विज्ञान –
दान के द्वारा व्यक्ति अपने पूर्व जन्म के कृत्यों / ऋणों को तटस्थ कर, अंतःकरण की शुद्धि करता है और ईश्वर की कृपा प्राप्त करने योग्य बनता है ।
दान विशेषतः आसक्ति अर्थात मोह और अहंकार पर काम करता है। जब हम दान करते है तो अधिकार की प्रवृत्ति ख़त्म होती है इसके फल स्वरुप मन में सहजता अर्थात खुलापन आता है
दान देते समय ध्यान रखने योग्य बातें –
दान करते समय दाता को ईर्ष्या क्रोध अहंकार इत्यादि विकारों से दूर रहना चाहिये . मन मे प्रसन्नता और उत्साह होना चाहिये . ईश्वर ने दान करने के योग्य बनाया है और अपनी सेवा करने का अवसर दिया है , इस भाव को रखते हुए प्रेम के साथ दान करना चाहिये .जब भी हम दान करते है तो प्रतिफल की आशा रख कर दान नहीं करना चाहिए। दान सुपात्र को ही देना चाहिए। दान देने के उपरान्त पश्चाताप की भावना नहीं होनी चाहिए। बिना विश्वास के दिया हुआ दान भी व्यर्थ हो जाता है।
आज काल अधिकतर लोगो मे दान देने की भावना घट रही है, इस के साथ ही जो संपन्न वा वैभव शाली लोग दान कर रहे है, उन मे से भी अनेक लोगो की भावना दान पर केन्द्रित ना हो कर दान के फल या अपनी तारीफ के लिये होती है, संपन्न लोग सोचते है कि जितना वो दान करेंगे उतना ही सम्मान मिलेगा। वह वयक्ति जो निष्पक्ष, निःस्वार्थ और सद्भावना से दान करता है वो ही स्वीकार्य होता है। जो लोग किसी कामना से दान करते है या कोई स्वार्थ रखते है उनकी केवल कामना ही पूर्ण होती है . ऐसा दान स्वार्थ और पक्षपात की श्रेणी मे आ जाता है ऐसे दान का फल निकृष्ट होता है।
हर धर्म कहता है वयक्ति को आमदनी का कुछ हिस्सा दान करना चाहिये . दान हमेशा फलता है और वयक्ति सुख, संपत्तिवान बनता है, व्यक्ति को वैभवशाली बनाता है,कुछ ही लोग दान के महत्व को समझते है, इस लिये वो अनगिनत बार बड़ी राशि दान सवरूप दे देते है . दान की भावना हर मनुष्य मे होनी चाहिये . चाहे कम या ज्यादा धन अर्जित करे अपनी भावना अनुसार व हैसियत के अनुसार दान अवश्य करना चाहिये . शास्त्र के अनुसार अपनी आय का दसवां हिस्सा दान हमेशा करना चाहिए। कई समस्याओं का समाधान जाने अनजाने केवल इसी नियम से हो जाता है।
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