शनि जब चन्द्रमा से बारहवे , प्रथम अथवा द्वितीय भाव में भमण करता है तो इसे शनि की साढ़े साती कहते है. शनि को एक राशी पार करने में ढाई वर्ष का समय लगता है अतः तीन रशिया पार करने में उसे साढ़े सात वर्ष लग जाते है. यही समय साढ़े साती के नाम से जाना जाता है. शनि को बारह राशियों का भ्रमण करने में लगभग साढ़े २९ वर्ष का समय लगता है. अतः किसी के भी जीवन काल में तीन बार शनि की साढ़े साती आ सकती है.
साधारणतया सभी यह मानते है की साढ़े साती सभी के लिए अशुभ होती है परन्तु ऐसा नहीं है. साढ़े साती का फल प्रत्येक व्यक्ति की जनम कुंडली पर निर्भर करता है . इसका अनुमान दी हुई तालिका से लगाया जा सकता है .
राशि
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पहले ढाई वर्ष |
दूसरे ढाई वर्ष |
अंतिम ढाई वर्ष |
मेष
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अति अशुभ |
सामान्य |
शुभ |
वृष
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अशुभ |
शुभ |
शुभ |
मिथुन
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शुभ |
शुभाशुभ |
अशुभ |
कर्क
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शुभ |
शुभाशुभ |
अशुभ |
सिंह
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अशुभ |
अशुभ |
शुभ |
कन्या
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अशुभ |
शुभ |
अतिशुभ |
तुला
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शुभ |
अतिशुभ |
अतिअशुभ |
वृश्चिक
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श्रेष्ठ |
कनिष्ठ |
मध्यम |
धनु
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अशुभ |
शुभ |
मध्यम |
मकर |
शुभ |
मध्यम |
उत्तम
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कुम्भ |
सामान्य |
शुभ |
शुभ
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मीन |
शुभ |
शुभ |
अशुभ
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यही कारण है की हर किसी को केवल साढ़े साती अथवा शनि के भय से शनि देव से सम्बंधित वस्तुओ का दान नहीं करना चाहिए. अगर शनि की स्थिति कुंडली में अच्छी है तो साढ़े साती लाभकारी होती है. ऐसी स्थिति में अनजाने में किया हुआ शनि का दान आपको उसके शुभ प्रभाव और लाभ से वंचित कर सकता है. अतः किसी अच्छे ज्योतिषी से सलाह लेने के उपरांत ही साढ़े साती का कोई उपाय करे.
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