आध्यात्मिक उन्नति के लिए सही प्रकार से मन्त्र का जाप होना अनिवार्य है . मंत्र जप तीन प्रकार से किया जाता है- वाचिक, उपांशु और मानसिक
वाचिक जप - बोलकर होता है। जो यज्ञ में बोला जाता हैं एक बोलता है सभी सुन सकते है, इसे बिखरी जाप भी कहते है .
उपांशु जप - इस प्रकार किया जाता है, जिसे दूसरा न सुन सके।
मानसिक जप - इस में जीभ और ओष्ठ नहीं हिलते है ।
तीनों जपों में पहले की अपेक्षा दूसरा और दूसरे की अपेक्षा तीसरा प्रकार श्रेष्ठ है। मानसिक जप बहुत शक्तिशाली होता है काफी अभ्यास के बाद ही सफल हो पाता है। जप में ज्यों ज्यों आगे बढ़ते जाँएगे, ध्यान की सघनता और आराध्य में सलंग्नता बढ़ती जाएगी और कालान्तर में मानासिक जप के साथ स्वत: ध्यान चलेगा . घर में जप करने से एक गुना, गौशाला में सौ गुना, पुण्यमय वन या बगीचे तथा तीर्थ में हजार गुना, पर्वत पर दस हजार गुना, नदी-तट पर लाख गुना, देवालय में करोड़ गुना तथा शिवलिंग के निकट अनंत गुना फल प्राप्त होता है।
निम्नलिखित बिन्दुओं का जप करते समय ध्यान रखे -
माला का शुद्धिकरण और प्राण प्रतिष्ठा के उपरान्त ही उससे जाप का आरम्भ करे .
शरीर की शुद्धि जाप आरम्भ करने से पहले आवश्यक है। अतः स्नान करके ही शुद्ध आसन ग्रहण कर, धुप/ अगरबत्ती और दीपक जलाकर जाप का आरम्भ करे ।
किसी भी मंत्र का आरम्भ करने से पूर्व श्री गुरु और श्री गणेश जी का ध्यान करे.
किसी भी मन्त्र के जाप के पूर्व संकल्प लेना अनिवार्य है .
जाप के समय मेरूदण्ड हमेशा सीधा रखना चाहिए, जिससे मन्त्र से उत्पन्न ऊर्जा का सुषुम्ना में प्रवाह आसानी से हो सके।
सही मुद्रा या आसन में बैठना आवश्यक है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।
मंत्र जप यदि उचित समय पर किया जाए तो बहुत अधिक लाभदायी होता है। इसके लिए ब्रह्म मूर्हुत यानि लगभग ४ से ५ बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानि दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।
मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय और नियत स्थान पर ही करें।
एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद स्थान , समय और मन्त्र बार बार न बदलें।
मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की १०८ दानों की माला का उपयोग किया जाता है । गुरु मन्त्र के अनुसार माला के प्रकार का चयन करते है । विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है।
पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके अधिकांशतः मंत्रो का जाप किया जा सकता है. फिर भी अपने गुरु के दिशानुसार दिशा का चयन करे.
किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए जब तक गुरु, मन्त्र परिवर्तित करने का आदेश नहीं देता ।
मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन, कम्बल पर बैठना श्रेष्ठ है। कम्बल या आसन का रंग गुरु से पूछकर निर्धारित करे .
मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे कोई मंदिर या घर का देवालय अन्यथा घर में ही किसी शांत कमरे में बैठ कर जप करे ।
मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए और माला को भी कपडे से ढक ले ।
माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली मध्यमा का उपयोग करें।
जप के लिए माला को मध्यमा अँगुली पर रखकर अँगूठे से स्पर्श करते हुए अंगूठे से फेरना चाहिए। सुमेरु का उल्लंघन न करें।
तर्जनी न लगाएँ।
सुमेरु के पास पहुचने पर माला को घुमा ले और दूसरी बार जपें।
जप करते समय हिलना, डोलना, बोलना, क्रोध न करें, मन में कोई गलत विचार या भावना न बनाएँ अन्यथा जप करने का कोई भी फल प्राप्त न होगा।
मन्त्र का जाप बहुत तीव्र गति के साथ नहीं करे. तन्मयता के साथ मध्यम गति से, शुद्ध उच्चारण के साथ करें.
लोगो के मध्य अपने मन्त्र जप की संख्या के प्रचार से बचे . किसी को भी अपना मन्त्र ना बताये .
कम से कम ९ माला का जाप प्रतिदिन करे . अधिक से अधिक कितना भी कर सकते है .
कुछ मंत्रो का जाप किसी भी अवस्था अर्थात चलते फिरते समय किया जा सकता है, किन्तु कुछ मंत्रो का जाप बैठकर ही किया जता है .
कुछ मन्त्रों का मानसिक जाप माहवारी के समय किया जा सकता है , किन्तु सब मंत्रो का नहीं . इसका चयन अपने गुरु के आदेशानुसार करें.
प्रत्येक व्यक्ति को अपने जाप की माला अलग रखनी चाहिए . माला के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखें और उसको स्वच्छ रखे .
माहवारी के समय जागृत माला का प्रयोग नहीं करना चाहिए . उँगलियों पर गणना की जा सकती है.
माला घुमाते समय शरीर के निचले हिस्सों से स्पर्श नहीं होनी चाहिए. इसके लिए रेहल का उपयोग करे अथवा नीचे कोई वस्त्र रखे .
माला को जाप के उपरान्त कपडे से ढक कर शुद्ध स्थान पर प्रणाम करते हुए रखें .
जाप करने से पूर्व सारे नैसर्गिक वेगों से निवृत्त हो कर बैठे , जिससे जाप के मध्य उठना ना पड़े .
यदि जाप के मध्य से उठना किसी भी कारणवश आवश्यक हो जाता है तो प्रणाम करते हुए और दुबारा बैठने का संकल्प लेते हुए आसन से उठे .
जाप के समय आज्ञा चक्र ( दोनों भौहों के मध्य ) अथवा मन्त्र के इष्ट के स्वरुप पर ध्यान केन्द्रित करे .
मन्त्र के प्रति पूर्ण श्रद्धा रख कर जाप करे .
जप संख्या पूर्ण होने के पश्चात नेत्र बंद कर कुछ समय ध्यान अवश्य करे और प्रणाम कर के उठ जाए .
जाप के पश्चात व्यर्थ के वार्तालाप से बचे .
शयन के समय अपने इष्ट के मन्त्र का मानसिक जाप अवश्य करें .