कालसर्प दोष का निर्माण ग्रहों कि एक विशेष स्थिति के फलस्वरूप होता है. जब राहु और केतु के मध्य सभी गृह आ जाते है तब इस योग का निर्माण होता है. इस योग की वजह से जातक को शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती है और जीवन में अत्यधिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है. जातक को शारीरिक , मानसिक और आर्थिक परेशानियों का सामना कर पड सकता है यह सत्य है की ये योग कठिन परिश्रम करवाता है और मानसिक चिंताएं देता है, किन्तु यह हमेशा अशुभ फल नहीं देता है. यदि इसका समय प़र समाधान कर लिया जाये तो यह योग सफलता के उच्च शिखर प़र भी पहुचता है.
राहु और केतु को छाया गृह भी कहते है . पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय एक राक्षस ने छल से अमृत पान कर लिया था. सूर्य और चन्द्र ने राक्षस को पहचान कर भगवान् विष्णु को बताया की राक्षस देवता का रूप धारण कर अमृत पी रहा है. भगवन विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सर धड से अलग कर दिया किन्तु अमृत की वजह से राक्षस की मृत्यु नहीं हुई. उसके सर को राहु और धड को केतु की संज्ञा दी गयी. दोनों अत्यधिक बलशाली गृह है. इनके कारण ही ग्रहण होता है
राहु का फल शनि के समान और केतु का मंगल के समान कहा गया है
काल सर्प योग का प्रभाव शुभ अथवा अशुभ जन्म कुंडली की स्थिति प़र निर्भर करता है . यह पूर्ण या आंशिक दो तरह के होते है. यदि सभी गृह राहु और केतु के एक तरफ आ जाये तो पूर्ण योग और यदि कोई एक ग्रह घेरे से बाहर आ जाये तो आंशिक काल सर्प योग होता है.
स्थान के अनुसार यह योग १२ तरह के होते है -
संख्या |
कालसर्प योग |
राहु की स्थिति |
केतु की स्थिति |
प्रभावित फल |
---|---|---|---|---|
१ |
अनंत |
प्रथम भाव |
सप्तम |
शरीर , वैवाहिक जीवन |
२ |
कुलिक |
द्वितीय |
अष्टम |
कुटुंब , आयु |
३ |
वासुकी |
तृतीय |
नवं |
पराक्रम, भाग्य |
४ |
शंखपाल |
चतुर्थ |
दशम |
सुख, कर्म |
५ |
पद्म |
पंचम |
एकादश |
संतान , आय |
६ |
महा पद्म |
षष्ठ |
द्वादश |
रोग, व्यय |
७ |
तक्षक |
सप्तम |
प्रथम |
विवाह , तन |
८ |
करकट |
अष्टम |
द्वितीय |
आयु, धन |
९ |
शंखचूड़ |
नवं |
तृतीय |
भाग्य |
१० |
घातक |
दशम |
चतुर्थ |
व्यवसाय , सुख |
११ |
विषधर |
एकादश |
पंचम |
आय, विद्या |
१२ |
शेषनाग |
द्वादश |
षष्ठं |
विदेश, शत्रु |
उपाय - कालसर्प दोष की शांति के लिए रुद्राभिषेक , महामृत्युन्जय जाप आदि का विधान है. नाग पंचमी के दिन नाग नागिन के जोड़े की पूजा और दूध पिलाने से भी कालसर्प दोष की शांति होती है .
महत्वपूर्ण तथ्य -
१- कालसर्प दोष की शांति हेतु यदि पूजा स्वयं की जाये तो वह अधिक फलदायी होती है.
२- इस दोष की शांति केवल एक बार पूजा करा लेनी से ही नहीं होती. इसके लिए दीर्घकाल तक प्रयास की आवश्यकता होती है .
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