बगुलामुखी साधना तंत्र से सम्बंधित है. तंत्र का अर्थ होता है व्यवस्थित और सुनियोजित ढंग से प्रकृति और ब्रह्माण्ड में तादात्म्य स्थापित करना. विधिवत किये गए तांत्रोक्त प्रयासों से प्रकृति के विधान में संशोधन किया जा सकता है और जीवन की जटिल कठिनाइयों का समाधान भी किया जा सकता है . बगुलामुखी साधना दश महाविद्या में अष्टम साधना है . इन्हें ब्रहमास्त्र विद्या , स्तम्भंकारिणीविद्या और पीताम्बरी माता के नाम से भी जाना जाता है . यह परमात्मा की संघार शक्ति है . देवी के इस स्वरुप के आराधना का वर्णन महाभारत और रामायण में भी मिलता है. अर्जुन ने महाभारत का युद्ध जीतने के लिए जिस स्वरुप की आराधना की थी वह माँ पीताम्बरा ही थी .रावण की वाटिका में जब श्री हनुमान जी के वेग को कोई नहीं रोक पाया था तब मेघनाथ ने जिस ब्रह्मास्त्र का उपयोग कर हनुमान जी को स्तंभित किया था , वह शक्ति देवी बगुलामुखी की ही थी . सर्व प्रथम बगुलामुखी महाविद्या की साधना ब्रह्मा जी ने की थी . इसके बाद श्री विष्णु जी ने आराधना की थी.एक बार सतयुग में एक विशाल तूफ़ान आया जिसमे सम्पूर्ण सृष्टि को नष्ट कर देने की शक्ति थी. तब भगवन विष्णु ने सौराष्ट्र में हरिद्रा सरोवर के बीच सबकी रक्षा हेतु आराधना की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता बगुलामुखी मंगलवार को चतुर्दशी तिथि में अर्ध रात्रि में प्रकट हुई और तूफ़ान को स्तंभित कर विश्व की रक्षा की .
बगुलामुखी साधना के उद्देश्य -
१- शत्रुओं का शमन २- संकट के निवारण ३- वाक् सिद्धि ४- वाद विवाद एवं मुकदमों में विजय ५- मनचाहे व्यक्ति से भेंट ६- रुके हुए धन की प्राप्ति ७- रोगों से मुक्ति ८- बुरी आत्मा व प्रेत बाधाओं से मुक्ति ९- दुर्घटना , शल्य चिकित्सा आदि से रक्षा १०- अनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभाव का शमन
बगुलामुखी मंत्र - !! ॐ ह्लीं देवी बगुलामुखी सर्व दुष्टनाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जीह्वाम कीलय, बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ स्वाहा !!
साधना में विशेष सावधानियां - १- यह साधना केवल योग्य गुरु के दिशा निर्देशन में दीक्षा लेकर ही करें . २- पूर्ण ब्रह्मचर्य अति आवश्यक है ३- देवी अपने साधक की परीक्षा लेती है अतः इस साधना के लिए पहले गुरु की सेवा में रहकर स्वयं के दोषों को दूर किया जाता है जिससे कर्म के बन्धनों से होने वाले मानसिक विकारों प़र विजय प्राप्त की जा सके. ४- साधना काल में इसकी चर्चा किसी से ना करें . ५- मंत्र की जाप संख्या का निर्धारण अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही करें . ६- वस्त्र और आसन पीले रंग के होने चाहिए. ७- देवी बगुलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं. इनके मंत्र का जाप भी आवश्यक होता है . ८- साधना से पूर्व गुरु का ध्यान अनिवार्य है.
विशेष - यह साधना सिर्फ गुरु के संरक्षण में ही की जाती है .
|