भाग्य, कर्म और ज्योतिष विज्ञान
भाग्य कैसे बनता है -
वह पूर्व जन्म के कर्म जिनका फल चाहे वह सुख हो या दुःख हम वर्तमान जीवन में भोगते है भाग्य बनाते है। हर व्यक्ति का भाग्य उसके पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार निर्धारित होता है और उन्ही कर्मों की वजह से वर्तमान जन्म में एक विशेष तरीके से व्यवहार करने के लिए बाध्य होता है. सुख-दुःख, धन-गरीबी, क्रोध, अहंकार, आदि गुण जो भी हम जीवन में पाते हैं वह सब पूर्व निर्धारित होता है. ज्योतिष केवल घटनाएं जानने का विज्ञान नहीं है, वह हमें हमारा भूत और भविष्य भी बताता है. साधारण व्यक्ति भाग्य को परिवर्तित नहीं कर सकते हैं और ना ही भाग्य के विषय में आसानी से जाना जा सकता है. क्योकि कर्म के फलों में परिवर्तन करने के लिए एक साधनारत ज्योतिषी और परिश्रमी साधक को लम्बे समय तक धैर्य के साथ प्रयत्न करने के आवश्यकता होती है।
समय क्या है और कैसे बनता है -
समय ही एक सबसे बड़ी शक्ति है जो की पूरे ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करती है . समय की निश्चित गति होती है. ग्रहों की अलग अलग गति हमारे जीवन में भिन्न भिन्न समय लाती है. उदहारण के लिए धरती का अपनी धुरी पर घूमना दिन और रात बनाता है, चन्द्रमा की पृथ्वी के चारों ओर गति महीने, और सूर्य के केंद्र में धरती की परिक्रमा वर्ष निर्धारित करती है. समय के हर पल की गति में एक विशेष गुण होता है. जब भी हमारे जीवन में कुछ विशेष समय होता है, वह सृष्टि के समय की तरंगों के समानांतर होता है. उदाहरण के लिए हमारे जीवन में विवाह अथवा व्यवसाय शुरू करने का समय, अन्तरिक्ष के समयचक्र में भी उर्जा की अधिकता से पूर्ण होता हैं.
गृह, हम और समय -
ग्रह हमारे कर्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनकी गति यह निर्धारित करती है की कब किस समय की उर्जा हमारे लिए लाभदायक है या हानिकारक है. समय की एक निश्चित्त प्रवृति होंने के कारण एक कुशल ज्योतिषी उसकी ताल को पहचान कर भूत, वर्तमान और भविष्य में होने वाली घटनाओं का विश्लेषण कर सकता है.
एक ही ग्रह अपने चार स्वरूपों को प्रदर्शित करता है. अपने निम्नतम स्वरुप में अपने अशुभ स्वभाव/राक्षस प्रवृत्ति को दर्शाते हैं. अपने निम्न स्वरुप में अस्थिर और स्वेच्छाचारी स्वभाव को बताते हैं. अपने अच्छे स्वरुप में मन की अच्छी प्रवृत्तियों, ज्ञान, बुद्धि और अच्छी रुचियों के विषय में बताते हैं. अपनी उच्च स्थिति में दिव्य गुणों को प्रदर्शित करते हैं, और उच्चतम स्थिति में चेतना को परम सत्य से अवगत कराते हैं. उदहारण के लिए मंगल ग्रह साधारण रूप में लाल रंग की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है. अपनी निम्नतम स्थिति में वह अत्याधिक उपद्रवी बनाता है. निम्न स्थिति में व्यर्थ के झगड़े कराता है. अपनी सही स्थिति में यही मंगल ऐसी शक्ति प्रदान करता है की निर्माण की असंभव संभावनाएं भी संभव बना देता है.
ज्योतिष विज्ञान के माध्यम से जब हमें समस्याओं का कारण ग्रहों के माध्यम से पता चलता है, तो उन्ही की उर्जा को नकारात्मकता से हटाकर पूजा, दान, मंत्र, इत्यादि विधानों से सकारात्मक रूप में बदल देते हैं. क्योंकि ऊर्जा का कभी क्षय नहीं होता किन्तु उसका स्वरुप परिवर्तित किया जा सकता है.
यही सूक्ष्म परिवर्तन भाग्य को परिवर्तित करने में बड़ा सहायक होता है.ग्रह केवल बंधन का कारण ही नहीं वरन उन समस्याओं से मुक्ति का मार्ग भी दिखाते हैं.
ज्योतिष अगर सही ढंग से प्रयोग किया जाए तो यह हम में और विश्व चेतना में सामंजस्य स्थापित करता है और ग्रहों की भौतिक सीमाओं से परे जाने की शक्ति देता है, जो कि मोक्ष के लिए आवश्यक है.
कर्म और ज्योतिष विज्ञान -
ज्योतिष विज्ञानं हमारे कर्मो का ढांचा बताता है . यह हमारे भूत वर्तमान और भविष्य में एक कड़ी बनता है. कर्म चार प्रकार के होते है:
१- संचित
२- प्रारब्ध
३- क्रियमाण
४- आगम
संचित - संचित कर्म समस्त पूर्व जनम के कर्मो का संगृहीत रूप है . हमने जो भी कर्म अपने पिछले सारे जन्मों में जानकार या अनजान रूप से किये होते है वह सभी हमारे कर्म खाते में संचित हो जाते है. कर्म जैसे -२ परिपक्व होते जाते है हम उसे हर जन्म में भोगते है. जैसे किसी भी वृक्ष के फल एक साथ नहीं पकते, बल्कि फल प्राप्ति के महीने में अलग - अलग दिनों में ही पकते है.
प्रारब्ध - प्रारब्ध कर्म , संचित कर्म का वह भाग होता है जिसका हम भोग वर्तमान जनम में करने वाले है . इसी को भाग्य भी कहते है. समस्त संचित कर्मों को एक साथ नहीं भोग जा सकता. वह कर्म जो परिपाक हो गया होता है. यही समय दशा अन्तर्दशा के अनुसार जाना जाता है .
क्रियमाण - क्रियमाण कर्म वह कर्म है जो हम वर्तमान में करते है किन्तु इसकी स्वतंत्रता हमारे पिछले जन्म के कर्मो पर निर्भर करती है . क्रियमाण कर्म इश्वर प्रदत्त वह संकल्प शक्ति है, जो हमारे कई पूर्व जन्म के कर्मो के दुष्प्रभावों को समाप्त करने में सहायता करती है. उदाहरण के लिए वर्तमान जन्म में माना कि क्रोध अधिक आता है. यह क्रोध कि प्रवृत्ति पिछले कई जन्मों के कर्मों के कारण बन गयी है. यह तो सर्व विदित है कि क्रोध में कितने गलत कार्य हो जाते है. अगर कोई ध्यान और अन्य उपायों के द्वारा क्रोध को सजग रहकर नियंत्रित करे तो धीरे - धीरे प्रयासों के द्वारा क्रोध पर संयम पाया जा सकता है और भविष्य में कई बुरे कर्मों और समस्याओ जैसे कि रिश्तों में तनाव इत्यादि को दूर किया जा सकता है.
आगम - आगम करम वह नए करम है जो की हम भविष्य में करने वाले हैं. यह कर्म केवल ईश्वर की सहायता से ही संभव है. जैसे की भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास और उस समस्या के समाधान के लिए ईश्वर के द्वारा दिशा निर्देश. जैसे- जैसे हमारे पाप कर्मों का बोझ कम होता जाता है, उच्च शक्तियों की सहायता मिलने लगती है.
हम अपना भविष्य अपने विचारों, शब्दों और कर्मो के द्वारा बनाते है. कर्म दो प्रकार के होते है - शुभ और अशुभ. दूषित कर्म जीवन में दुःख लाते है . हमारे पूर्व जनम के कर्म मन को प्रभावित करते है . अगर हम नकारात्मक विचारों को, जो की मन को कमजोर बनाते है, ध्यान और उपायों के द्वारा दूर करें तो यही मन सकारात्मक विचारों की उर्जा से हमारे कर्मो को शुद्ध कर देता है जिससे एक नए भविष्य का निर्माण संभव हो जाता है . उपायों के द्वारा जब हम आपने पुराने कर्मो को संतुलित कर देते है तो मन के ऊपर से उनकी बाधा हट जाती है. भविष्य उसी तरह से परिवर्तित होता है जब चेतना अथवा मन परिवर्तित होता है . किसी भी समस्या से मुक्ति मिल सकती है आवश्यकता केवल निष्कपट रूप से सही दिशा में प्रयास करने की होती है.
भाग्य कैसे बदलता है -
हम जो भी मानसिक, शारीरिक अथवा वाचिक कर्म करते हैं, वह हमारे मानस पटल पर संस्कार बन कर अंकित हो जाते हैं. उदाहरण - यदि आम का बीज बोते हैं, तो हमें आम ही मिलते हैं. उससे हम अन्य फल नहीं पा सकते. किन्तु आम का बीज सही रूप से फल दे इसके लिए बाह्य परिस्थितियाँ भी उत्तरदायी होती हैं, जैसे की अच्छी ज़मीन, खाद और समय पर पानी. इस उदाहरण में बीज कारण(cause) हैं और बाकी चीज़ें ऐसे कारक जो की परिवर्तित किये जा सकते हैं (वेरिएबल्स). इससे यह तो सिद्ध हो गया की किसी भी कारण (बीज) को फलीभूत होने के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ चाहिए होती हैं. अब हम यह मान लेते है की हमने अच्छा बीज, अच्छी ज़मीन में बोया और उसको समय समय पर खाद-पानी दिया किन्तु फिर भी फल के लिए हमें पौधे के वृक्ष बनने का और फल पाने के लिए ग्रीष्म ऋतु की प्रतीक्षा करनी पड़ती है. इसी तरह, जब हम सद्कर्म रुपी बीज बोते हैं या उपाय करते हैं, तो उसके फल के लिए हमें धैर्य रखना चाहिए और समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए. इसी बात को अब हम बुरे कर्मों के लिए समझते हैं. अगर हमने पिछले जनम में कोई बुरा कर्म रुपी बीज बो रखा है, अगर हम उसे सही परिस्थितियाँ उपलब्ध न कराएं तो उसका फल हमें नहीं मिलेगा. यही भविष्य बदलने की कुंजी है.
कर्मों की प्रबलता और उपायों में लगने वाला समय -
कर्म फल की तीव्रता को 3 भागों में विभाजित किया गया है:
१- दृधा
२- दृधा - अदृधा
३- अदृधा
जो दृधा कर्म होते हैं उनको किसी भी उपाय से आसानी से नहीं बदला नहीं जा सकता और ऐसे कर्मो के फल बहुत हद तक भोगने ही पड़ते है . कुंडली में जब एक ही परिस्थिति के होने के लिए कई ग्रह उत्तरदायी हो तो वह कठिन दृधा कर्मों को बताते हैं. ऐसी परिस्थिति में परिवर्तन लाना बहुत कठिन होता है . यह परिस्थिति और भी विकट हो जाती है जब लगन , चन्द्र लगन और सूर्य लगन में भी वही परिस्थितियाँ घटित हो रही हो. यह कर्म केवल इश्वर और गुरु की कृपा से ही बदलना संभव है.
दृधा - अदृधा कर्म , कर्मों की एक मिश्रित परिस्थिति होती है जिसमे कर्मों को निष्प्रभावी को किया जा सकता है किन्तु अति कठोर प्रयासों की जरुरत होती है . इसमे समय भी अधिक लगता है और अदम्य इच्छा शक्ति की भी आवश्यकता होती है.ऐसे कर्मों के लिए कम से कम एक वर्ष की आवश्यकता होती है.
अदृधा कर्मों को ज्योतिषीय प्रयत्नों के साथ आसानी से परिवर्तित किये जा सकते है. अधिकांशतः ऐसे प्रयासों का फल ९० -१२० दिनों के भीतर मिल जाता है.
यह याद रखें की जो कर्म जितना अधिक प्रबल होगा उसको सही करने में समस्याए भी उतनी ही आती है. समय कठिन परीक्षा लेता है और कई बार ऐसी परिस्थितिया उत्पन्न होंगी कि उपाय करने का नियम भंग हो जाये.
अत्यंत गुणी ज्योतिष ही भविष्य का सही पूर्व कथन कर सकते हैं. समय को सही तरीके से सिर्फ ध्यान की उच्चतम स्थिति में ही देखा जा सकता है. हममें से अधिकाँश लोगों के मन भटकते रहने के कारण समय को सही तरीके से नहीं देख पाते है और न ही समझ पाते हैं. ध्यान की विचारशून्य स्थिति में ही भाग्य को बदला जा सकता है और नए भाग्य का निर्माण किया जा सकता है. गंभीर ध्यान की स्थिति में बीते हुए समय, वर्तमान समय और भविष्य, सब एक हो जाते हैं. अर्थात उन्हें अच्छी तरह से बिना बाधा के देखा जा सकता है. ज्योतिषी गणना तो प्रशिक्षण के द्वारा भी सीखी जा सकती है किन्तु भविष्य का सही ज्ञान सिर्फ ध्यान की स्थिति में ही संभव है.
भाग्य परिवर्तन के लिए नियम -
हमारी कुंडली में केवल ग्रह ही हैं जो बदलते रहते हैं और उनका प्रभाव हमारे जीवन पर बहुत अधिक पड़ता है. किन्तु यही ऐसे कारक हैं जिन तक पहुंचना और कुछ हद तक समझ पाना हमारे लिए संभव है. ग्रहों के केवल विनम्रता और प्रेम के साथ ही मनाया जा सकता है. इसका तात्पर्य यह है की हम जब भी उपाय करें अपने ज्ञान और सामर्थ्य के अहंकार को छोड़ कर पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और समर्पण के साथ उपायों को करें. ज्योतिष उपायों के माध्यम से ही ग्रहों के उपायों द्वारा अपने कर्मों को बदला जा सकता है. ईमानदारी और नियमतता उपाय सफल होने के आवश्यक अंग हैं.
नए भविष्य निर्माण के लिए सबसे पहला कदम है अपनी कमियों को समझ कर उन्हें दूर करने का प्रयास करना. हम जो भी करें, उसके लिए हमें शांत, संयमित होना चाहिए. साथ ही अपने कर्मों का सजग रह कर विश्लेषण भी करना चाहिए. अगर हम कमियों को हमेशा सही ही साबित करेंगे तो हम कभी भी अपने जीवन में उन्नति नहीं कर पायेंगे और न ही भविष्य को संवार पायेंगे. हमारे पूर्व जन्म के बुरे कर्मों ने ही वर्तमान की विषम परिस्थितियों को पैदा किया होता है और हमारे अन्दर नकारात्मक कर्मों के लिए प्रवृत्ति भी पैदा की होती है. यदि हम उस प्रवृत्ति में बहते जायेंगे तो भविष्य और बिगड़ता ही जाएगा. अतः सबसे महत्त्वपूर्ण कदम है अपनी कमियों को समझना.
किसी भी कर्म के प्रभाव को निष्क्रिय करने के लिए वर्तमान में हमें उसी परिमाण, तीव्रता और गुणात्मकता के कर्म करने पड़ते है , तब कहीं एक साधारण परिवर्तन प्राप्त कर पाते है . यही कर्म का अटल सिद्धांत है . अतः यह हमेशा ध्यान रखें कि समस्या जितनी बड़ी होगी उसी के अनुसार मंत्र जाप , दान, रत्न , अनुष्ठान , और अन्य उपायों की जरुरत पड़ती है. यह समझना एक भूल होती है कि बड़ी बड़ी समस्याएँ केवल एक ही उपाय जैसे मन्त्र जाप या छोटे छोटे दान से शीघ्र संभव हो जाये. वह समस्या की तीव्रता को कुछ सीमा तक कम कर सकते है परन्तु परिस्थितियों में पूरी तरह बदलाव नहीं ला सकते. पूर्व जन्म के कर्मों को निष्फल करने के लिए बहुत सघन प्रयासों की ज़रूरत होती है. कई बार इसमें पूरा जन्म भी लग जाता है.
बहुत बार ऐसा होता है कि जीवन की दूर की घटनाओं को देखना संभव नहीं हो पाता है और बहुत कुशल ज्योतिषी भी भविष्य की घटनाओं को पढने में सक्षम नहीं हो पाते किन्तु इसका अर्थ यह नहीं होता की ज्योतिषी के ज्ञान में कमी है. कई बार प्रश्नकर्ता के पाप कर्मों का भार इतना अधिक होता है की वह अच्छे से अच्छे ज्ञानी के विवेक और अंतर्दृष्टि के आगे एक दीवार बना देता है जिससे की ग्रहों को समझ पाना और अन्य गणनाएं करना मुश्किल हो जाता है. ज्योतिषी अगर साधना के उच्च स्तर पर है, जो वह कुछ हद तक उस सीमा को पार कर समस्या का समाधान ढूंढने में सक्षम हो जाता है. इसका तात्पर्य यह है की प्रश्नकर्ता को यह भी समझना चाहिए की ज्योतिष को एक विज्ञान की तरह लें. उदाहरण के लिए चिकित्सा क्षेत्र में बहुत उन्नति होने के बाद भी कहीं न कहीं कुछ सीमा होती है और चिकित्सक को सारी जांच के परिणामों को अपनी बुद्धि के साथ रोग की पहचान करनी पड़ती है. उसी तरह ज्योतिष में भी ग्रहों की स्थिति और अन्य योगों के द्वारा समस्याओं का समाधान गुरु के मार्गदर्शन में गहन विद्या अध्ययन और आध्यात्मिक उन्नति के बाद ही संभव है .