आध्यात्मिक उर्जा का क्षय
दो व्यक्तियों के मध्य सकारात्मक ऊर्जा का आदान प्रदान हो यह आवश्यक नहीं. इसका अर्थ यह है कि नकारात्मक ऊर्जा किसी दुसरे व्यक्ति से सात्विक व्यक्ति को बिना किसी चेतावनी के शांत रूप में प्रवेश कभी भी कर सकती है.
सात्विक / आध्यात्मिक व्यक्ति की ऊर्जा की प्रकृति और कार्यशैली, संसार में लिप्त व्यक्तियों से अलग होती है. सात्विक व्यक्तियों और साधना के आरम्भ में यह उर्जा अत्याधिक कोमल और ग्रहणशील होती है, फलस्वरूप किसी भी प्रकार की नकारात्मकता उसको आसानी से क्षतिग्रस्त कर देती है. साधक के द्वारा किसी भी प्रकार के कटु वचन का प्रयोग, नकारात्मक विचार, खाने पीने में असावधानी और स्थान आदि की अशुद्धता उन्ही को अधिक प्रभावित कर देती है.
इसके विपरीत नकारात्मक ऊर्जा की आवृत्ति कम होती है और सहजता के साथ प्रवेश कर अपना विस्तार शीघ्र कर स्थायी रूप ले लेती है जिसके कारण इसका विस्थापन और रूपांतरण आसान नहीं होता है.
कई बार ऊर्जा का प्रवाह उच्च स्तर से निम्न स्तर की ओर बिना किसी विशेष क्रिया के उसी प्रकार हो जाता है जिस प्रकार पानी ऊँचे स्थान से नीचे स्थान की ओर प्रवाहित हो जाता है.
प्राण शक्ति अत्यंत सूक्ष्म और संवेदनशील होती है. इसको प्रभावित करने वाले बहुत सारे कारक है जैसे स्पर्श रस रूप गंध शब्द इत्यादि किन्तु यह सबसे ज्यादा प्रभावित मानसिक स्थिति से होती है. उदाहरण के लिए कोई कितना भी सुन्दर क्यों ना हो यदि विचार अच्छे नहीं होंगे तो ऐसे व्यक्ति का स्पर्श नकारात्मक ऊर्जा का ही प्रसार करेगा. यदि भोजन बनाते समय मन की स्थिति शुभ नहीं हो तो भोजन की सात्विक शक्ति कम हो जाती है.
ऐक व्यक्ति जिसने दिन भर मन में नकारात्मक घटनाओं, व्यक्तियों अथवा वस्तुओं का चिंतन किया है , वह पास आ कर कुछ ना भी कहे किन्तु फिर भी सात्विक ऊर्जा प्रभावित हो जाती है . ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बार बार एक ही विचार की पुनरावृत्ति होने के कारण नकारात्मक उर्जा प्रबल हो जाती है और सकारात्मक व्यक्ति ग्रहणशील होने के कारण बिना स्पर्श शब्द और दृष्टिपात से प्रभावित हो जाता है.
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