ऊर्जा के आवागमन के सिद्धांत को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर सहजता से समझा जा सकता है –
* दो रूपों में होता है – सकारात्मक और नकारात्मक
* दो प्रकार से होता है – ज्ञात अवस्था में और अज्ञात अवस्था में
* दो लोग महत्वपूर्ण है – देने वाले की क्षमता , ग्रहण करने की क्षमता
* दो कारक जो उर्जा हन्तानान्तरण को प्रभावित करते है – कर्म , विश्वास
ऊर्जा के हस्तान्तरण के लिए ज्ञान और इश्वर की कृपा होना आवश्यक है. उदाहरण के लिए बिना जाने विदुत के तार को सीधे पकड़ लिया जाये तो व्यक्ति को करेंट लग कर करंट की क्षमता के अनुसार शारीरिक नुकसान होता है. विद्युतीय करंट उदासीन है , उसका कर्म है केवल – बहना। इसलिए जो भी व्यक्ति करंट का प्रयोग करना चाहता है , यह उसका उत्तरदायित्व होता है कि उसके सम्बन्ध में पहले पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली जाए। उसी प्रकार बिना सही प्रकार से आध्यात्मिक शक्तियों के संचय,उपयोग और हस्तानांतरण का ज्ञान सही प्रकार से ना हो तो इस प्रक्रिया में लिप्त व्यक्ति को हानि पहुच सकती है. यह हानि शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक किसी भी रूप में हो सकती है. किस प्रकार की और कितनी मात्रा में हानि होगी, यह उपयोग में आ रही ऊर्जा के प्रकार, मात्रा और कार्य के उद्देश्य पर निर्भर करता है. यदि उद्देश्य सकारात्मक और आध्यात्मिक हो तो नुकसान थोड़ा कम होता है.
सकारात्मक ऊर्जा हस्तानान्तरण किसी समस्या के समाधान जैसे रोग निवारण, ग्रह शान्ति जैसे अन्य कार्य और आध्यात्मिक उन्नति के लिए गुरु द्वारा शिष्य के लिए किया जाता है। नकारात्मक ऊर्जा का हस्तानान्तरण अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए किया जाता है. जैसे संपत्ति की प्राप्ति के लिए किसी के दिमाग को बंद कर देना या किसी को अपनी नकारात्मक सोच के अनुसार चलाने के लिए किसी की बुद्धि भ्रमित करना।
ऊर्जा चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक, इसका हस्तानान्तरण अवश्य होता है। अधिकांशतः लोगों में ऊर्जा का हस्तानान्तरण बिना उनके अनुभव के स्वतः होता रहता है। वाणी , विचार , स्पर्श , श्रवण , गंध इत्यादि के माध्यम से निरंतर ऊर्जा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के ऊर्जा स्तर को प्रभावित करती रहती है। जब प्रभावित होने वाली ऊर्जा की मात्रा अधिक हो जाती है तो इसका अनुभव हमें होने लगता है। जैसे कोई व्यक्ति जिसके व्यक्तित्व में आंतरिक नकारात्मकता अधिक है किन्तु वाह्य व्यवहार शालीन है ऐसे व्यक्ति से वार्तालाप के उपरान्त बेचैनी या चिड़चिड़ाहट का अनुभव होना। साधु संतो अथवा सत्संग के उपरान्त सकारात्मक ऊर्जा के कारण शांति का अनुभव होना। ज्ञान ना होने की स्थिति में चिड़चिड़ाहट अथवा बेचैनी का कारण समझ नहीं पाते है और हमारा व्यवहार परिवर्तित हो जाता है। हमारा व्यवहार नकारात्मक होकर अन्य लोगों में नकारात्मक ऊर्जा का प्रसार कर देता है। छोटे बच्चों में ऊर्जा का परिवहन शीघ्र होता है और वह नकारात्मक ऊर्जा के लिए अधिक संवेदनशील होते है। यही कारण है कि बच्चों को नजर अधिक लगती है। नजर के कारण बच्चे अधिक जिद करने लग जाते है जाते है अथवा खाना पीना छोड़ देते है।
ज्ञात अवस्था में ऊर्जा का हस्तानान्तरण केवल श्रेष्ठ जनों द्वारा ही संभव है। जब एक सिद्ध गुरु, जिसने के सभी संचित और प्रारब्ध कर्मों के फलों को समाप्त कर लिया है और प्राणियों के कल्याण के लिए परम चेतना से जुड़ कर ऊर्जा का स्थानांतरण करता है तो उसका परिणाम अत्यंत शुभ होता है। अन्य लोग यदि केवल किताबों द्वारा ऊर्जा के संयमन का ज्ञान प्राप्त कर भी ले किन्तु परिणाम लाना संभव नहीं होता।
ऊर्जा को अपनी इच्छानुसार गति प्रदान करने के लिए स्वयं के कर्मों का रूपांतरण , ऊर्जा विषयक समस्त ज्ञान और ईश्वर की कृपा होना अनिवार्य है.