प्रतिपदा तिथि का आरंभ : 9 अक्टूबर 2018, मंगलवार 09:16 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त : 10 अक्टूबर 2018, बुधवार 07:25 बजे
कलश स्थापना समय – 10 अक्टूबर – प्रात: 6.22 से 7.25 मिनट तक रहेगा
नवरात्र की तिथियां –
प्रतिपदा / द्वितीया – 10 अक्तूबर – माँ शैलपुत्री माँ ब्रह्मचारिणी
तृतीया – 11 अक्तूबर – माँ चन्द्रघण्टा
चतुर्थी – 12 अक्तूबर – माँ कुष्मांडा
पंचमी – 13 अक्टूबर – माँ स्कंदमाता
पंचमी – 14 अक्तूबर – माँ स्कंदमाता
षष्टी – 15 अक्तूबर – माँ कात्यायनी
सप्तमी – 16 अक्तूबर – माँ कालरात्रि
अष्टमी – 17 अक्तूबर – माँ महागौरी (दुर्गा अष्टमी)
नवमी – 18 अक्तूबर – माँ सिद्धिदात्री (महानवमी)
दशमी- 19 अक्तूबर- विजय दशमी (दशहरा)
कलश स्थापना हेतु सामग्री –
मिटटी अथवा ताम्बे का कलश
शुद्ध पानी और गंगाजल
कलावा
फूल , अशोक अथवा आम के पत्ते – ५ ,७, ९
अक्षत
पानी वाला नारियल
लाल कपड़ा , माता की लाल चुनरी
अगरबत्ती , कपूर , घी /चमेली का तेल
फल ,मेवा और मिठाई
कुमकुम (रोली), हल्दी
श्रृंगार सामग्री
अन्य वैकल्पिक वस्तुएं – साडी , चौकी
घट स्थापना विधि –
- घटस्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए।
- कलश स्थापना के समय (प्रथम दिन व्रत रखें) . न्यूनतम व्रत की संख्या नवरात्रों में दो होती है. यदि आप अष्टमी पूजन करना चाहते है तो सप्तमी को व्रत रखें और कुमारिका पूजन के उपरान्त अपना व्रत खोलें।
- स्नान के उपरान्त नवरात्रि की पूजा आरम्भ करे।
- पूजा करते समय मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें।
- पूजा स्थल के सामने थोड़ा स्थान खुला होना चाहिए, जहां बैठकर ध्यान व पाठ आदि किया जा सके।
- मंदिर साफ़ करने के उपरान्त मंदिर में रखी हुई मूर्तियों /फोटो को भी साफ़ करें।
- मंदिर में लाल कपड़ा बिछाये और मूर्तियों अथवा फोटो को यथास्थान रखे। यदि स्थापना आप चौकी पर करे तो उस पर भी लाल कपड़ा बिछाएं।
- दीपक और धूपबत्ती जलाएं।
- सर्वप्रथम गुरु और गणेश जी का ध्यान करे।
- कलश पर कलावा को तीन बार लपेट कर तीन गांठें लगाएं.
- कलश पर हल्दी और रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनायें.
- कलश को जल से भरे और उसमे एक बूँद गंगाजल डाले।
- कलश में आम अथवा अशोक के पत्ते रखे।
- एक मुट्ठी चावल रख कर कलश की स्थापना करें।
- नारियल को भी कलावा से तीन बार लपेट कर तीन गांठें लगाएं।
- नारियल को माँ का स्वरुप समझ कर पूर्ण भक्तिभाव से चुनरी उढ़ायें और संकल्प (भक्ति, स्वास्थ्य , सुख शान्ति ) )का ले कर नारियल को कलश पर स्थापित करें।
- मां को अब तिलक फल फूल श्रृंगार सामग्री समर्पित करें।
- तत्पश्चात गुरु के द्वारा दिए हुए मंत्र अथवा दुर्गा चालीसा अथवा दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
- पूजा समाप्त होने के उपरान्त माँ की आरती घी अथवा कपूर से करें।
- पूरी नवरात्रि तिलक इत्र फल फूल माँ को समर्पित करे और जाप उपरान्त आरती करें।
- आरती के पश्चात दंडवत प्रणाम करें।
आरती अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरतीतेरे भक्त जनों पे माता भीड पड़ी है भारी
दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिंह सवारी
सौ-सौ सिहों से भी बलशाली, है दस भुजाओं वाली,
दुखियों के दुखड़े निवारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरतीमाँ-बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता
पूत-कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता
सब पे करूणा दर्शाने वाली, अमृत बरसाने वाली
दुखियों के दुखड़े निवारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरतीनहीं मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना
हम तो मांगें माँ तेरे मन में एक छोटा सा कोना]
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली
सतियों के सत को संवारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरतीचरण शरण में खड़े तुम्हारी, ले पूजा की थाली
वरद हस्त सर पर रख दो माँ संकट हरने वाली॥
भर दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओं वाली,
भक्तों के कारज तू ही सारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरतीअम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
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हवन करने वाली जगह को साफ करे ।
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एक टाइल / ईंट/बालू पर हवन कुंड रखें.
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हवन कुंड के बीच में, कपास बाती रखे और उसके चारों ओर कपूर फैलाये ।
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इसके पश्चात पतली लकड़ियों को बाती के चारों ओर रखे. फिर एक दुसरे को काटते हुए दूसरी लकड़ियाँ रखे. हर परत के साथ मोटाई में वृद्धि कर सकते हैंएक समय में सभी लकड़ी नहीं रखे । कुछ लकड़ियों को बचा ले, जिनका आप पूर्णाहुति और अन्य समय में आवश्यकतानुसार उपयोग कर सकते हैं
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।एक थाली में हवन सामग्री निकाले और भेंट के लिए एक चम्मच के साथ एक अलग कटोरी में घी ले।
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थोड़ा दूर हवन कुंड से एक आसन पर बैठे जिससे आपको आंच परेशान ना करे और आहुति देने में भी सुविधा हो । यदि आप किसी बीमारी के भूतल पर बैठने में असमर्थ हैं, तो कुर्सी ले सकते है ।
- मंदिर / पूजा स्थान में दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
- पहले गुरु और भगवान गणेश का ध्यान करे । इसके बाद देवी दुर्गा की सुंदर रूप पर अपना ध्यान केंद्रित करे ।
- अब अग्निदेव का ध्यान और आह्वाहन इस प्रार्थना के साथ करे कि वो आपकी आहुतियाँ स्वीकार करे और हवन कुंड के सामने फूल और चावल के दाने उनको समर्पित करें ।
- माचिस या अगरबत्ती के साथ हवन कुंड को प्रकाशित करे – ओम अग्नि देवाय नमः तीन बार मंत्र का उच्चारण भी कर सकते हैं।
- स्मरण रखे कि हवन सामग्री दाहिने हाथ के साथ ही समर्पित की जाती है और एकाग्रता के साथ अंत में स्वाहा शब्द का प्रयोग किया जाता है। घी को हवन सामग्री में मिश्रित करें। प्रथम आहुति गणेश जी की तीन घी से दें। यथायोग्य हवन कुंड प्रज्ज्वलित करने के लिए घी का प्रयोग करे। बाकी आहुतियां हवन सामग्री से दे.
- ॐ गं गणपतये स्वाहा – पहली तीन आहुतियाँ इस मंत्र के साथ भगवान गणेश को समर्पित करें .
- अब नीचे लिखे अनुक्रम में देवो को एक बार आहुति दे –
- ओम कुल्देव्ये / कुल देवाय स्वाहा
- ओम स्थान देवाय स्वाहा
- ओम ग्राम देवाय स्वाहा
- ओम वास्तु देवाय स्वाहा
- ओम सूर्य देवाय स्वाहा
- ओम चंद्र देवाय स्वाहा
- ओम भौमाय स्वाहा
- ओम बुद्ध देवाय स्वाहा
- ओम गुरु देवाय स्वाहा
- ओम शुक्राय स्वाहा
- ओम शनि देवाय स्वाहा
- ओम राहवे स्वाहा
- ओम केतवे स्वाहा
इस के बाद महा मृत्युंजय मंत्र के साथ 27 बार आहुति दे –
- निम्नलिखित देवी मंत्र के साथ 108 बार हवन करे – “ओम एम् ह्रीं क्लीम चामुन्डाये विच्चये स्वाहा “
- शेष हवन सामग्री, घी और पञ्च मेवा के साथ नारियल गोला भरें। नारियल गोले को थोड़ा ऊपर से काट ले और सामग्री भरने के पश्चात उसको ढक्कन की तरह बंद कर ले। निम्नलिखित मंत्र के साथ हवन कुंड में आहुति दे –
- ॐ आचमनं समर्पयामि मन्त्र के साथ हवन के चारो ओर जल का छिडकाव करे।
- देवी की आरती करे ।
- ॐ शांति शांति शांति ओम कहते हुए साष्टांग दंडवत प्रणाम करे ।
कलश में स्थापित नारियल को तोड़ कर कुमारिकाओं / कन्याओं में वितरण कर दे। आयु अनुसार कन्या रूप
दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है। और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है।
छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं।
दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है।