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नकारात्मक स्थिति से कैसे निपटें

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सकारात्मक व्यक्तियों पर नकारात्मक ऊर्जा अर्थात तमो गुण का प्रभाव कभी कभी अधिक  हो जाता है. तमो गुण के प्रभाव  कारण वह अपनी आध्यात्मिक यात्रा में स्वयं ही बाधा उत्पन्न  कर लेते है और वर्तमान ऊर्जा के स्तर से नीचे गिर जाते है. एक साधक को यह ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक कि किन परिस्थितियों में तमो गुण ( नकारात्मक सोच और व्यवहार) हमारे ऊपर हावी होकर सत्व गुण अर्थात ज्ञान, विश्वास और सकारात्मक कर्म को निर्बल बना देता है.

हम सभी में काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार की विभिन्न मात्राएँ विभिन्न रूपों में विद्यमान होती है. इसका विभाजन ऋषि मुनियों ने तीन विभागों में किया है – सत्व , रज और तम।  सत्व गुण प्रधान व्यक्ति में काम क्रोध इत्यादि की मात्रा रज और तम गुण प्रधान व्यक्तियों की तुलना में कम अवश्य होती है किन्तु इससे मुक्त नहीं होते. मात्रा कम होने कारण इन विकारों का प्रदर्शन कभी कभी होता है  उसका स्वरुप भी भिन्न होता है।  तमो गुण वाले व्यक्ति में ये विकार अधिक आक्रामक स्वरुप में होते है और वह उसमें दूसरों को उपद्रव कर कर के बुरी तरह परेशान कर देते है. इसके विपरीत सत्व गुण वाले व्यक्तियों पर जब तमो गुण हावी होता है तो वह स्वयं को ही अधिक कष्ट देते है. उनके विचार इस प्रकार आते है – मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ , मैं  सबके साथ अच्छा हूँ पर मेरे साथ अच्छा नहीं होता, मेरी भूल नहीं पर मै ही कष्ट में हूँ, लोग गलत कर के खुश है, मेरा परिवार  मेरी इच्छाओं एवं भावनाओं का सम्मान नहीं करता, मेरी बातों पर  नही दे रहा, जो वचन दिया उसको पूरा नहीं किया जा रहा, मै इतने समझौतों के साथ जीवन जी रहा हू पर इस बात को कोई महत्व नहीं दे रहा इत्यादि इत्यादि।

इस प्रकार के विचार जब आते हैं तो सात्विक व्यक्ति विकारों को अपने अंदर प्रवेश करने का अवसर दे देते हैं। इन विकारों की विशेषता यह होती है कि ये प्रवेश करते साथ ही बहुत तीव्रता के साथ अपना विस्तार कर सत्व गुण की शक्ति को कम कर देते है. इस कारण व्यक्ति अपनी शांति और संयम की स्थिति से गिर कर अस्थिर और असंयमित हो जाता है।  ऐसे विचार जिनका कोई अर्थ नहीं, मन को आंदोलित करने लगते है।  अशांत मन के कारण कर्म की गति और दिशा दोनों बदल जाती है जिसके कारण समय और  आध्यात्मिक ऊर्जा का बहुत अधिक मात्रा में नुकसान हो जाता है।

ऐसी स्थितियों का सामना साधक को जीवन में बार बार करना पड़ता है. इसलिए प्रश्न यह है कि इस प्रकार की बाधाओं से कैसे बचा जाये ? इसका  समाधान अत्यंत सहज है. काम क्रोध मोह इत्यादि तभी सक्रिय हो कर प्रवेश कर सकते है जब इनके बारे में ध्यान दिया जाए और अपनी धारणा के अनुरूप विश्लेषण कर उस पर सही या गलत का निर्णय दिया जाये . उदाहरण के लिए सास यदि बहू की बुराई करे , बहु उसको सुन कर अंदर ही अंदर बार बार उन बातों को सोचने लगे और नकारात्मक बातों से प्रभावित हो कर दुखी होना प्रारम्भ कर दे तो कुछ पल की बाते मन के अंदर अत्यंत कटुता पैदा कर व्यवहार को परिवर्तित कर देता है. यह कटुता , और पुरानी व्यर्थ की बातों को सतह पर ले आती है. जिसके कारण कटुता  बढ़ जाती है और मन सत्व गुण से हट जाता है. सत्व गुण  के कमजोर हो जाने के कारण मन  अस्थिर हो कर अन्य उलटे सीधे विचारों को जन्म देकर शरीर और मन दोनों को अत्यंत थका देता है. बहु या अन्य किसी भी व्यक्ति के ऐसी परिस्थितियों से प्रभावित हो जाने का कारण अहंकार और प्रतिष्ठा / प्रशंसा का मोह होता है.

जब कोई हमारी निंदा करता है या हमसे असहमत होता है तो अहंकार के कारण हम स्वयं को  निंदक  बातो अर्थात शब्द रुपी नकारात्मक ऊर्जा से जोड़ लेते है. यह बात मन में अवश्य आती है कि हमारे बारे में ऐसी बात क्यों की? फिर इस पर विश्लेषण कर नकारात्मक ऊर्जा को फलने फूलने का मौका देते है और फिर एक धारणा बना कर उसको सशक्त कर देते है. इसके विपरीत यदि निंदा को बिना ध्यान दिए और  विश्लेषण किये हुए वही छोड़ देते है और नियति को स्वीकार कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते रहते है तो नकारात्मक ऊर्जा हमारे अंदर प्रवेश नहीं कर पाती है जिसके कारण उसकी वृद्धि नहीं हो पाती है और शीघ्र ही समाप्त हो जाती है. इस के कारण समय एवं सत्व गुण की हानि ना होने के कारण  शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते है.

यह बात साधक को हमेशा स्मरण रखनी चाहिए कि सत्व गुण / सकारात्मकता होती सशक्त अवश्य  है किन्तु संवेदनशील भी बहुत होती है. सत्व गुण की सुरक्षा सजगता, विशवास,अनुशासन, कर्म एवं मन की शुद्धता को बनाये रख कर ही की जा सकती है. परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल लगे किन्तु थोड़ी सी भी सजगता अन्य सद्गुणों की सहायता से किसी भी विषम परिस्थिति को अनुकूल बनाने की सामर्थ्य रखती है. इसलिए जब समय सही हो तो व्यर्थ के प्रपंचों में ना फंसकर सजगता और अन्य सद्गुणों के निरंतर विकास पर कर्मठ हो कर विकास करना चाहिए, जिससे विपरीत परिस्थितियाँ हमारी आध्यात्मिक यात्रा में विघ्न उत्पन्न ना कर सके.

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