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ऊर्जा देने की क्षमता

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किसी अन्य व्यक्ति को ऊर्जा देने के लिए निम्नलिखित बिदु अत्यंत महत्वपूर्ण है –

प्रथम – ऊर्जा देने वाले व्यक्ति का परम चेतना के साथ सम्बन्ध
द्वितीय – ऊर्जा के आह्वाहन और हस्तानान्तरण के समय मन की स्थिति
तृतीय – काल / समय की अनुकूलता
चतुर्थ – ऊर्जा देने वाले का ज्ञान, अनुभव और कौशल
पंचम – देने वाले और ग्रहण करने वाले व्यक्ति के मध्य सम्बन्ध
षष्ठ – स्थान , मन और कर्म के कारण दोनों के मध्य अंतर / दूरी

ऊर्जा देने वाले व्यक्ति का, परम चेतना के साथ सम्बन्ध जितना गहरा होता है उतनी ही अधिक उसकी क्षमता होती है और ऊर्जा की गुणवत्ता एवं प्रभाव उतना ही अधिक होता है. व्यक्ति जितना अधिक मन और बुद्धि को शुद्ध करता है, इश्वर के साथ सम्बन्ध उतना ही घनिष्ठ होता जाता है.

ऊर्जा के आह्वाहन और किसी व्यक्ति को हस्तानान्तरण करने के लिए मन का स्थिर और एकाग्र होना अत्यंत आवश्यक है. इसी अवस्था में ईश्वरीय शक्ति के साथ सम्बन्ध स्थापित हो सकता है.

कुछ विशेष तिथियाँ होती है जैसे नवरात्रे इत्यादि, जिनमे ऊर्जा की मात्रा प्रकृति में प्रचुर मात्रा में विद्यमान होती है जिसके कारण उनका आह्वाहन सहज हो जाता है. इन तिथियों में मन एवं शरीर भी उसको ग्रहण करने योग्य अधिक होता है.

ऊर्जा को किसी अन्य व्यक्ति को देने के लिए ऊर्जा को उसके योग्य बनाना होता है क्योकि जो व्यक्ति शरीर और मन से ऊर्जा के लिए तैयार नहीं होता है उसके लिए ऊर्जा का ग्रहण करना सहज नहीं होता है इसलिए जो व्यक्ति ऊर्जा दे रहा है उसको ग्रहण करने वाले व्यक्ति की प्रकृति, प्राकृतिक क्षमता और आध्यात्मिक स्तर का ज्ञान होना आवश्यक है जिसके आधार पर ही यह निर्धारित होता है कि किसको कितनी मात्रा में, किस प्रकार की ऊर्जा, किस समय दी जाए जिससे वह ग्रहण करने वाले व्यक्ति के लिए उपयोगी हो सके.

ऊर्जा देने वाले और ग्रहण करने वाले व्यक्ति के मध्य सम्बन्ध होना अनिवार्य है. यह सम्बन्ध इस प्रकार का हो सकता है जैसे – शिक्षक और छात्र का, रोगी और वैद्य का, संस्था प्रमुख और कर्मचारी. सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक सम्बन्ध गुरु और शिष्य का होता है. दीक्षा की प्रक्रिया इस सम्बन्ध को दृढ़ता प्रदान करती है. बिना किसी सम्बन्ध के ऊर्जा को संकेंद्रित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

स्थान के कारण दूरी अधिक हो तो ऊर्जा के परिवहन के लिए अधिक समय और मात्रा की आवश्यकता होती है. ऊर्जा को ग्रहण करने वाला व्यक्ति यदि मानसिक रूप से तैयार ना हो तो ऊर्जा व्यर्थ चली जाती है. कठिन कर्मों के कारण भी ऊर्जा की ग्रहण शीलता कम हो जाती है.

इस प्रकार ऊर्जा के आदान प्रदान हेतु समस्त आवश्यक परिस्थितियों का ज्ञान और अभ्यास दोनों अनिवार्य है.

 

 

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