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ऊर्जा का हस्तांतरण – भाग-3

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इश्वर की अनंत ऊर्जा इस ब्रह्माण्ड में विशाल मात्रा में उपस्थित है. इस ऊर्जा को हम दो परिस्थितियों में ग्रहण करते है – ज्ञात अवस्था और अज्ञात अवस्था . अज्ञात अवस्था होती है – निंद्रा की अवस्था जिसमे हम एक निश्चित मात्रा में अपने दैनिक कार्यों को संपन्न करने हेतु ऊर्जा को अनजाने में ग्रहण करते है.

जब हम आध्यात्मिक नियमों का पूर्णतः पालन करते है तो जागृत अवस्था में भी ईश्वर की ऊर्जा को ग्रहण कर सकते है. आध्यात्मिक नियम जैसे किसी की निंदा ना करना, छोटी छोटी बातों से आहत ना होना, सत्संग, मंत्रो का जाप , नित्य इश्वर आराधना करना, प्राणायाम, योग-ध्यान, दान इत्यादि समय समय पर करते रहना और बुजुर्गो एवं संतों की सेवा करते रहना जैसे कर्म आध्यात्मिक ऊर्जा की जागृत अवस्था में वृद्धि करते है.

जो ऊर्जा जागृत अवस्था में ग्रहण की जाती है वह अधिक शक्तिशाली और उपयोगी होती है. जो व्यक्ति जितना अधिक पूर्व संचित नकारात्मक कर्मों का शुद्धिकरण कर लेता है, उसकी ब्रह्मांडीय ऊर्जा को ग्रहण करने की क्षमता और ऊर्जा की गुणवत्ता उतनी ही अधिक होती है.

अब प्रश्न यह उठता है कि निद्रा और जागृत अवस्था में ऊर्जा की मात्रा और गुणवत्ता में यह अंतर किस कारण होता है ? इसका उत्तर है मन की स्थिति के कारण यह अंतर होता है. आध्यात्मिक ऊर्जा को ग्रहण मन के द्वारा किया जाता है. मन सचेत अवस्था में जितना शांत, स्थिर और एकाग्र होता है ऊर्जा उतनी ही मात्रा में मन में संगृहीत होकर सूक्ष्म शरीर को सबल बनाती है और चक्रों का शुद्धिकरण करती है. इसके विपरीत निंद्रा एक मूर्छा की अवस्था है. इस अवस्था में भी मन में संसार की बाते सूक्ष्म रूप से समायी रहती है जो कि परमात्मा से एक होने में बाधा उत्पन्न करती है. दुसरा कारण यह है कि निंद्रा अवस्था में तमोगुण की प्रधानता के कारण मन का अपना अस्तित्व ही अत्यंत सीमित हो जाता है जिसके कारण ऊर्जा को ग्रहण करने के मात्रा और उसकी उत्कृष्टता प्रभावित हो जाती है.

यदि जागृत अवस्था में मन को संयमित और संतुलित कर लिया जाये तो सत्व गुण की प्रधानता से मन की क्षमता असीम हो जाती है और एकाग्रता आकाशीय ऊर्जा की गुणवत्ता को उत्तम कर देती है. इन्ही कारणों से जागृत अवस्था में ग्रहण की गयी ऊर्जा अधिक उपयोगी हो जाती है.

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