इस संसार में उपस्थित प्रकृति के सभी व्यक्त और अव्यक्त रूपों में एक ही चेतना विद्यमान है . इस चेतना का प्रतिशत सब रूपों में अलग अलग होता है . ऊर्जा की अभिव्यक्ति को शास्त्रों में कला के रूप में व्यक्त किया गया है. सम्पूर्ण चेतना की मात्रा सोलह कला है .
प्रकृति के अन्य स्वरूपों में चेतना की मात्रा इस प्रकार है –
* पत्थर में चेतना की मात्रा – १ कला
* जल में चेतना की मात्रा – २ कला
* अग्नि में चेतना की मात्रा – ३ कला
* वायु में चेतना की मात्रा – ४ कला
* आकाश में चेतना की मात्रा – ५ कला
* वनस्पतियों और पशुओं में चेतना की मात्रा – ५ कला
* मनुष्यों में चेतना की मात्रा – ६ – ७ कला
* महापुरुषों, ऋषियों और मुनियों में चेतना की मात्रा – ९ कला
इश्वर के विभिन्न अवतारों में चेतना की मात्रा ९ कलाओं से अधिक होती है . जैसे भगवान् की राम अवतार में १२ कलाए थी. मनुष्य के अन्दर ही यह सामर्थ्य होती है कि अपनी अपूर्णता को सम्पूर्ण कर सके किन्तु प्रकृति के अन्य अभिव्यक्त रूपों में यह सामर्थ्य नहीं होती. इसलिए मनुष्य जीवन का सदुपयोग अत्यंत आवश्यक है.